लड़का हो या लड़की पर हमारा मन तो
खबर सुनते ही उस विधाता पर
दोषारोपण करने लग जाता है
खबर सुनते ही उस विधाता पर
दोषारोपण करने लग जाता है
ऐसा क्यो होता है ?
बालक बैठने लगा ,चलने लगा
बुद बुदाने लगा ,बोलने लगा
मन दूसरे बालकों कि चाल-ढाल से
तुलना करने लगता है
ऐसा क्यो होता है ?
ऐसा क्यो होता है ?
बालक पाठशाला जाने लगता है
मन लगातार शाला में ,टीचरों में
उलझा रहता है दूसरी शाला ,अध्यापक बेहतर
ऐसा क्यों होता है ?
बालक बोर्ड परीक्षा देता है
मन लगातार दूसरे बालकों कि तैयारी और पढ़ाई
हमारे बालक से बेहतर में , उलझा रहता है,
हमारे बालक से बेहतर में , उलझा रहता है,
ऐसा क्योँ होता है?
बालक कॉलेज जाता है
मन दूसरे बालकों के करियर सर्विस में उलझा रहता है
ऐसा क्यों होता है ?
बालक के पारिग्रहण का समय आया है
मन दूसरे वर- बधुओ की तुलना में ही उलझा रहता है
ऐसा क्योँ होता है ?
नाती- नातिन, पोता- पोती का होता है आगमन
मन फिर वापिस उसी विधाता पर
दोषारोपण करने लग जाता है
ऐसा क्यों होता है ?
7 टिप्पणियां:
Because we believe in doubts and doubt in beliefs.
हम जब अपनी उपलब्धि की दूसरों से तुलना करेंगे और संतुष्टि से दूर भागेंगे तो निश्चय ही यह प्रश्न उठेगा ऐसा क्यूँ होता है. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
प्रथम तो सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.
यदि "ऐसा क्यूँ होता है" प्रश्न किसी में भी उत्पन्न होने लगता है तो समझिए "ऐसा नहीं होता है". आशय है की इन प्रश्नों की उत्पत्ति का कारण है स्वंय का मानसिक विश्लेषण.
ब्लॉग पर आकर हौंसला बढाने के लिए साधुवाद. ब्लॉग पर आपका सदैव आत्मीय स्वागत रहेगा.
अरविन्द जांगीड,
कनिष्ट लिपिक,
जनवी, नागौर.
ऐसा ही होता है , फिर ऐसा होना बंद हो जाता है।
अच्छी पोस्ट , नववर्ष की शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
yahi jeewan hai,gol-gol ghoomte rahna.
दोषारोपण न हो, जीवन को सींचा जाये।
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