गणतंत्र दिवस आया और चला गया
वही परेड,वही ध्वजारोहण ,वही भाषण दोहराया गया
बात तो हमारे नेता सब आधुनिकता की करते है
पर हमारे नेता परम्पराएं वही पुरानी दोहरातें है
जब हमारे नेता ,देश के करनधार आज भी
कही भी ,कुछ भी नया नहीं सोच पाते है
तो फिर क्यों ? वो हमसे कुछ नया चाहते हैं
गाँधी नेहरु और इन्द्रा को ही दोहराते है
क्यूंकि वो सब उनकी मज़बूरी है -परंपरा है
क्यों नहीं एक भी बार "सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते"..
और "मनोज पाण्डेय" ,"शशांक सिंधे" का नाम जुवां पर लाते
बच्चे, युवा ,बुजुर्ग लगभग सभी हैं परिचित हैं इन नामो से
उनकी क़ुरबानी ,जज्बा ,देश प्रेम से ही कुछ सीखें हम
अपनी जान गंवाकर इन शहीदों ने भी दिया है बहुत कुछ
हमको ,हमारे देश को ,हमारी आने वाली नस्लों को बचाकर
हमारे नेताओं ने इन सभी वीरों को कर दिया सम्मानित
और कर दी गयी ईतिश्री उनके बलिदानों की
इनके त्याग , इनके हौसलों की खबरें तो छपी
पर उस कवरेज को भी ढँक लिया हमारे नेताओं ने
नेताओ और आतकियों के आगे तो हमारे शहीद छुप गए
और भुला दिए गए उनके बलिदान, हमारे गणतंत्र दिवस पर
क्यूंकि २६ जनवरी को यूँही इसी रूप में मनाना
हमारी परंपरा है ......मज़बूरी है ...?
वही परेड,वही ध्वजारोहण ,वही भाषण दोहराया गया
बात तो हमारे नेता सब आधुनिकता की करते है
पर हमारे नेता परम्पराएं वही पुरानी दोहरातें है
जब हमारे नेता ,देश के करनधार आज भी
कही भी ,कुछ भी नया नहीं सोच पाते है
तो फिर क्यों ? वो हमसे कुछ नया चाहते हैं
गाँधी नेहरु और इन्द्रा को ही दोहराते है
क्यूंकि वो सब उनकी मज़बूरी है -परंपरा है
क्यों नहीं एक भी बार "सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते"..
"सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते". |
बच्चे, युवा ,बुजुर्ग लगभग सभी हैं परिचित हैं इन नामो से
उनकी क़ुरबानी ,जज्बा ,देश प्रेम से ही कुछ सीखें हम
अपनी जान गंवाकर इन शहीदों ने भी दिया है बहुत कुछ
हमको ,हमारे देश को ,हमारी आने वाली नस्लों को बचाकर
हमारे नेताओं ने इन सभी वीरों को कर दिया सम्मानित
और कर दी गयी ईतिश्री उनके बलिदानों की
इनके त्याग , इनके हौसलों की खबरें तो छपी
पर उस कवरेज को भी ढँक लिया हमारे नेताओं ने
नेताओ और आतकियों के आगे तो हमारे शहीद छुप गए
और भुला दिए गए उनके बलिदान, हमारे गणतंत्र दिवस पर
क्यूंकि २६ जनवरी को यूँही इसी रूप में मनाना
हमारी परंपरा है ......मज़बूरी है ...?
13 टिप्पणियां:
जरा याद उन्हें भी करलो, जो लौटके घर ना आए.
नमन देश के लिये शहीद इन सच्चे सपूतों को...
बहुत अच्छी रचना, शहीदों को श्रधांजलि.
बहुत ही दुःख का विषय है, मूल रूप से आज की परिस्थितियों का जनक है "व्यक्ति का चारित्रिक पतन". आखिरकार जीवन के सभी आयाम जुड़े तो व्यक्तियों से ही है.
.........बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता.
आभार.
बहुत सार्थक आक्रोश..
उनकी क़ुरबानी ,जज्बा ,देश प्रेम से ही कुछ सीखें हम
अपनी जान गंवाकर इन शहीदों ने भी दिया है बहुत कुछ
हमको ,हमारे देश को ,हमारी आने वाली नस्लों को बचाकर
हमारे नेताओं ने इन सभी वीरों को कर दिया सम्मानित
और कर दी गयी ईतिश्री उनके बलिदानों की
बहुत ही अच्छी रचना.... शहीदों ने हमें जो दिया है उसका बदला तो हम जान देकर भी नहीं चुका सकते तो कम से कम इतना करे क़ि उनके आदर्शों पर चलने क़ि कोशिश करें और उनकी कुर्बानी को याद रखें .. हमारा शत - शत नमन है उन्हें...
Roshi Agarwal जी
आपका कहना बिलकुल सही है ...आपकी रचना का एक एक शब्द विचारणीय है ..इस देश में अभी भी तुच्छ मानसिकता के लोग शासन करते हैं ..और वो फिर अपना राग अलापते हैं ...क्या कहें ...आपका शुक्रिया इस सार्थक रचना के लिए
विचारणीय स्थिति कि क्यों मनायें गणतन्त्र।
akrosh vicharniya hai...lekin gantantra diwas manana bhi jaruri hai...:)
विचारणीय विचार साथ में सराहनीय भी ...
सार्थक सोच और विचारणीय विषय ...सुंदर
good
good
good
क्यों नहीं एक भी बार "सालस्कर" ,"करकरे" ,"अशोक कामते"..
बहुत खूब, रोशी जी, बाकी नेहरु/इन्द्र जी को याद करना इनकी मज़बूरी हे, , शानदार prastuti
badhai kabule
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