गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

आज अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है 

समस्त नारी जाति को बेबकूफ़ बनाकर फंसाया जा रहा है 

साल के ३६४ दिन तो हैं उस बेरहम पुरुष के पास 
बस एक दिन नारी जाति के नाम करके उसको फसाया जा रहा है 
उत्पीडन तो शुरू हो जाता है उसके गर्भ में आते ही 
ज्यादातर का सफ़र तो गर्भ में ही ख़त्म हो जाता है 
बाकी को जन्मते ही होती हैं दुस्वरिया,
खीर मक्खन तो खाए भाई और वो रह जातीं बेचारियाँ 
बचपन, पढाई सब लाँघ कर जब पहुंचे वो ससुराल 
लगे उसको मिल गया हो सपनो का साज  
यहाँ भी है बही बखेड़ा , ससुराल के हिसाब नहीं होता थोडा  
यह ना है बाबुल का घर तुम्हार
माँ से सुनती आई थी मायके में तो मेहमान है 
असली घर है ससुराल ही तुम्हार 
सारा गणित है गड़बड़ाया नारी का की कौन सा घर है हमार
पर कहीं ना मिलता सुख उसको वहां पिता यहाँ पति सब करते उससे आशाएं अपार
यही है ९० % महिलाओं की जिंदगी पर भार 
आखिर कियूं मनाया जा रहा है यह महिला दिवस का त्यौहार 
जिस दिन महिलाओं को मिले सम्पूर्ण अधिकार प्यार और सत्कार 
मिलेगा उसी दिन होगा महिलाओं का महिला दिवस साकार ... 


2 टिप्‍पणियां:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सचमुच,जिस दिन नारी को उसका सम्मान वापस मिल जाएगा ,नारी दिवस की सार्थकता उसी दिन सिद्ध होगी !
मन को छू गयी आपकी अभिव्यक्ति !
आभार !

virendra sharma ने कहा…

vo sabki hai uska koi nahin yahi to vyathaa hai naari kee .
veerubhai

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...