पर कुछ बन्धनों में बेडिओं में जकड़ी है वो माँ
चाह कर भी कभी कुछ ना कर पाने का मलाल करती है माँ
सर्वस्व न्योछाबर करने को हरदम तैयार रहती है माँ
बिना कभी भी यह जाने की औलाद किया करेगी ना सोचती माँ
जब आंखे होंगी कमजोर तो किया सहारा बनेंगी औलाद ?
जब शरीर थकेगा तो किया हाथ पकड़ेगी औलाद सोचती है हरदम माँ ?
जब होगी वृद्ध , असहाय तो किया बोझ उठाएगी औलाद
सोचती है माँ ?
11 टिप्पणियां:
सर्वस्व न्योछाबर करने को हरदम तैयार रहती है माँ
बिना कभी भी यह जाने की औलाद क्या करेगी ना सोचती माँ...
बहुत सुन्दर विचारों ते परिपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई.
माँ ही तो सबका ख्याल रखती है!
माँ तो सब कुछ करती है अपनी औलाद के लिए .......
अब सभी औलादें अपनी माँ के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती हैं या नहीं .... चिंतनीय विषय है
Roshi ji bahut hi matmikta ke sath maa ke mahtv ko ukera hai aapne .aabhar .
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.. बिना प्रतिफल की इच्छा के केवल माँ ही अपना सर्वस्व बच्चे पर न्यौछावर कर सकती है, पर आज कल बच्चे कितना उसके बारे में सोचते हैं? बहुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति..
भावपूर्ण रचना.. मुनव्वर राना की दो लाइन याद आ रही है।
मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है
जब वो बहुत गुस्से मे होती है तो रो देती है।
माँ सदा सहारा रही है और रहेगी।
मां की ममता और महत्व को तो अवतार लेकर भगवान ने भी स्वीकारा है...
बहुत सुंदर...
हुत सुन्दर विचारणीय प्रस्तुति..
ma ki mamta ko bahut sunder shabdo me likha hai.
ma ki mamta ko bahut hi sunder shabdo me likha hai.
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