गुरुवार, 26 मई 2011

मासूम परी

वो है मासूम परी, इतनी कोमल जैसे मिश्री की डाली 
उसका मन निर्मल, स्वभाव शांत और 
कियूं कर ईश्वर ने बनाया उसको ऐसा ? 
थी वो कोई इश्वेर्ये वरदान जो मिली थी उसको वो लली 

आत्मा भी थी उसकी शुद्ध, न थी कोई तामसी ब्रती वहां 
आज की युग में भी कोई बालक हो सकता है कहाँ ? 

न थी उसको कोई जेवर, कपडे और किसी भी उत्पात की चाह
बस सदा जीवन उच्च विचार ही था उसकी राह

कभी भी , कहीं भी , किसी भी चीज को ना थी उसको जरुरत 
किया ईश्वर ने बनाया था उसका स्वभाव या उसने खुद बना ली थी फितरत 

दूसरो को ही देना, कभी खुद कुछ न लेना ऐसा था उसका स्वभाव 
कहना आसन लगता है पर निभाना है मुश्किल ऐसा वर्ताब 

माँ होकर भी हरदम सोचती कियूं न उसको कभी भी मन न चलता 
कितना सयंम , था उसको मन पर यह कभी भी दूसरे को ना पता चलता ...


6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी ही भावमयी रचना।

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना...

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

मासूम अहसाओं को समेटे भावपूर्ण रचना !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Sunder ...hridaysparshi rachana.....

BrijmohanShrivastava ने कहा…

दूसरों को देना और खुद कुछ न लेना एक भाव प्रधान रचना धन्यवाद

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