रात का सन्नाटा था पसरा हुआ
चाँद भी था अपने पुरे शबाब पर
समुद्र की लहरें करती थी अठखेलियाँ
पर मन पर न था उसका कुछ बस
यादें अच्छी बुरी न लेने दे रही थी चैन उसको
दिल को सुकून देने का था तमाम बंदोबस्त वहां
पर दिमाग को था न जरा भी चैन वहां
उसके अनगिनत घाव थे और आत्मा थी लहुलोहान
सबको मौसम रहा था लुभा और था बहुत हसीन
पर जो बबंडर दिल में उठ रहा है उसका क्या ?
मन को ना आये खुबसूरत चाँद और उठती समुद्र की लहरें
क्यूंकि विदार्ण आत्मा ने तो बना दिया हर जख्म सूल
बहती बयार सुंदर समां कुछ भी न खुश कर सका उसको
बस ये सब था उसके मन के लिए एक धूल..
38 टिप्पणियां:
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
बहुत सुन्दर रचना लिखी हैं आपने तो!
बेहतरीन रचना...आभार
मन को ना आये खुबसूरत चाँद और उठती समुद्र की लहरें
क्यूंकि विदार्ण आत्मा ने तो बना दिया हर जख्म
यथार्थ पर आधारित रचना सूल
बेहद सुंदर रचना....
व्यथित मन की पीड़ा व्यक्त करती सुंदर कविता
उसके अनगिनत घाव थे और आत्मा थी लहुलोहान
सबको मौसम रहा था लुभा और था बहुत हसीन
पर जो बबंडर दिल में उठ रहा है उसका क्या ?
संवेदना से भरी मर्मस्पर्शी रचना....
प्रभावशाली पंक्तियाँ।
खूबसूरत एव मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर रचना प्रभावशाली पंक्तियाँ।
मन न लगे तो कोई भी जगह खूबसूरत नहीं हो सकती है.
अनगिनत घाव थे
और आत्मा थी लहुलोहान
सबको मौसम रहा था लुभा
और था बहुत हसीन
पर जो बबंडर दिल में उठ रहा है
उसका क्या ?
मन को उद्वेलित करने वाली बेहतरीन रचना.... आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
बेहतरीन।
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कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
खूबसूरत अभिव्यक्ति**बेहतरीन रचना.... आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.*****
बहुत सुन्दर रचना.
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार
संवेदना से भरी मर्मस्पर्शी रचना....
अतिसुन्दर शब्द और उसके साथ
आपने जिस तरहां से अपने
जज्बात रखे हैं उनको जितना कहूँ
कम है प्रकृति का कोई सा
ऐसा द्रश्य छुटा होगा
जिसको आपने दर्द एक
मर्म के साथ न जोडा हो
बहुत अच्छा लगा
आपके ब्लॉग पर आकर
कभी मेरे ब्लॉग पर
भी आप अपने विचार रखियेगा
खूबसूरत अभिव्यक्ति नहीं कहूँगी... कहूँगी बहुत दुःख भरी अभिव्यक्ति... और उसको जीवित कर दिया आपने अपनी लेखनी से..आभार
roshi ji
jab aatma hi vidirn ho chuki ho to use kuchh bhi achha nahi lagta fir chahe jitna bhi ullasman ko kush karne wali cheejen hi kyun na ho
bahut hi sach likha hai aapne
bahut bahut badhai
poonam
खूबसूरत अभिव्यक्ति ........
रोशी अगरवाल जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को "सिटी जलालाबाद डाट ब्लॉगपोस्ट डाट काम"के "हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज" पर लिंक किया जा रहा है|
sukoon registaan mein
paanee ke bhram
samaan hotaa
dikhtaa to hai
miltaa kahaan ?
har insaan sukoon
kee talaash mein
bhatakttaa rahtaa
binaa sukoon ke
sukoon kahaan
miltaa
sukoon paane ke liye
man masthishk ko
kaboo mein karnaa
nirantar ichhaaon par
niyantran rakhnaa
padtaa
बहती बयार सुंदर समां कुछ भी न खुश कर सका उसको
बस ये सब था उसके मन के लिए एक धूल..
...sach jab man dukhi to sabkuch dhool ke saman hi hai..
manobhavon kee badiya gahan abhivykati..
ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..
राजनेताओं की मक्कारी और अनवरत भ्रष्टाचार के बावजूद
भारतीय स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .
बहुत सुन्दर रचना.
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं
Happy Independence day.
खूबसूरत अभिव्यक्ति............
नमस्कार....
बहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
रोशी जी आपकी प्रस्तुति मन को भा गई है.
पर आत्मा का लहू लोहान होना समझ नहीं आया,
कहते हैं आत्मा परमात्मा का ही अंश है जिसका स्वभाव 'सत्-चित-आनंद' ही है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
मन की पीड़ा व्यक्त करती सुंदर रचना...
bahut sundar aur bhavnatmak rachna...abhar
कई सन्दर्भ के साथ अर्थ दे रही है और यही है कविता की सफलता.
सहज अभिव्यक्ति.
यदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
बहुत सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति
रात का सन्नाटा था पसरा हुआ
चाँद भी था अपने पुरे शबाब पर
समुद्र की लहरें करती थी अठखेलियाँ
पर मन पर न था उसका कुछ बस
यादें अच्छी बुरी न लेने दे रही थी चैन उसको
दिल को सुकून देने का था तमाम बंदोबस्त वहां
पर दिमाग को था न जरा भी चैन वहां
उसके अनगिनत घाव थे और आत्मा थी लहुलोहान
...........खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.........
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