क्यूंकि तब सुना था माँ के मुह की लड़की के हालात न बदले
वही दान, वही दहेज़, माँ बाप को चाहिए और लड़के को रंग गोरा
पहले न था शिक्षा पर इतना जोर पर व्याह पर खर्च था पूरा
लड़की को दिखाना, उसकी नुमाइस सभी कुछ भी न था बदला
पसंद आ गई तो रिश्ता पक्का वरना खाया पिया और चले
लड़की के दिल दिमाग में जरा भी झांक कर न देखा की उस पर किया गुजरी
बेचारी कितनी तकलीफ मानसिक व्यंग से वह है गुजरी
पर लड़के, उसके सम्बन्धी , माता पिता उनका इससे किया वास्ता
लड़का तो ऊँचे दाम पर बिक ही जायेगा आज नहीं तो कल कोई दाम
दे ही जायेगा.
हालात आज भी बही है बिल्कुल भी न बदले
बाप को चाहियें रुपया, बेटे को रंग गोरा और पड़ी लिखी
नुमाइस पहले भी होती थी आज भी होती है और होती रहेगी
आए खाया पिया, देखा और चले जरा भी न दिल धड़का
बेचारी लड़की आज भी बहीं है उसी लीक पर चल रही है
उस मासूम के लिए क्यूँ नहीं दर्द उपजा ? क्यूँ, क्या कभी उपजेगा ?
नहीं शायद कभी नहीं क्यूंकि वो तो यहीं यातनाये
कवच झेलने के लिए जन्मी हैं इस संसार में और
यह समाज न बदला न ही कभी बदलेगा
क्या नहीं बदल पायेगा ये समाज ?
जो था कल बही है आज क्या इसको कहते है हम समाज
11 टिप्पणियां:
यही तो विडम्बना है...रोशी जी.
नारी के दर्द को बड़े ही प्रभावी ढंग से आपने उभारा है !
वास्तव में आज जो कुछ समाज में नारी के साथ हो रहा है उसे देखकर पूरी मानवता शर्म से तार तार हो जाती है और यह प्रश्न उठता है कि क्या हम एक स्वस्थ समाज के अंग हैं ! हमारी सारी उन्नति और उपलब्धि हमारे ऊपर हंसती है !
बहुत सम्वेदनशील पोस्ट लिखी है आपने!
सही कहा है ......नारी की स्थिति आज भी वही है .सार्थक पोस्ट
यदि स्थिति वही है तो कहाँ का बदलाव।
जब तक युवा पीढ़ी इस सामाजिक बुराई का अंत करने के उद्देश्य से कोई क्रांति न छेड़ दे तब तक शायद हालातों में कोई खास परिवर्तन नहीं आयेगा.
Sach me in baaton ke baare me soche to kya badla hai..? kahan badala hai...?
यही तो विडम्बना है..जिसे चाह कर भी बदल नहीं सकते...
बिलकुल सही कहा दोस्त सिर्फ तरीका बदला है बाकि सब वेसा ही है |
एक दर्द को फिर से उभार कर इस समस्या की तरफ इशारा करने में सफल रचना |
par sonhte aur dekhte hi yaha tak waqt aa gaya ,,,,,,,,,jo badlav chahiye uska kitna ans tak badlav ham dekh paye hain ???
halaat to aur kharaab hote ja rahe hain.
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