शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

नकली रिश्ते

जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया हमको यक़ीनन
ना रहे बहुत ज्ञानी ,ध्यानी और ना ही किया बहुत चिंतन
पर धोखे ,विश्वासघात और खंजर क्या- क्या ना पाई तडपन
पर अब जाकर समझ आई इन्सान की असली पहचान
जब कीड़े ,मकोड़े ना बदल सकते कुदरतन अपना स्वभाव
चोट पहुचना ,डंक मारना उनका इश्वर प्रदत्त स्वभाव
हम इन्सान होकर क्योँ भूल जाते है सबका विचित्र स्वभाव
सारी     जिन्दगी उसको स्वानुकूल बनाने में ही लगा देते हैं
और फिर हम होते हैं परेशां ,दुखी ,अवसादग्रस्त और वेचैन
क्योँ ना रहे दूर  और ना लाये होते  उसको दिल के करीब
विष वमन,कपट ,छल,द्वेष ,और जलन ये ही था उसका स्वभाव
 समझाया था दिल को वक़्त ने शायद बदला हो उसका व्यव्हार
पर व्यर्थ ,निरर्थक थी हमारी सोच जो ना देख सकी दिल के आर पार

6 टिप्‍पणियां:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने !
आभार !

Maheshwari kaneri ने कहा…

बिल्कुल सही और सटीक बात कहा है....

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

S.N SHUKLA ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच कहा है ... इंसान हमेशा दूसरों अनुसार करना चाहता है ... पर पछताता भी है ...

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...