शनिवार, 3 दिसंबर 2011

भ्रम जाल




अवसाद गहन अवसाद में घिर गए थे हम
अपनों  ने ना  दिया होता सहारा तो मर ही गए थे हम
अपनों ने ही धकेला था हमें अवसाद की गहरी खाई में भ्रम जाल
और अपनों ने ही निकाला,और नेक सलाह सुझाई
मानसिक संतुलन था गड़बड़ाया और था दिल घबराया
अँधेरा ही अँधेरा था और देता था न कुछ दिखाई
रिश्तों की गुत्थी उलझी इतनी की सिरा भी न आता पकडाई
 क्या करते जीना भी तो यही है ,मकडजाल में आत्मा भी घबरायी
हम खुद ही इसके जिम्मेदार हैं बात यह ही अब समझ आई
न करते हम अपने आसपास इतनी गंदगी इकठा करते रहते सफाई
सच्चे दोस्त,सगे ,सम्बन्धी और अपनों की इसी अवसाद ने पहचान कराई
अब न घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते -आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तेयारी कर ली थी हमने रिश्तों में उलजने की
दावानल में घिरने की ,अब फिर से है बारी आई
कोई न है विकल्प इस माया जल का बहु भांति है हम अजमाई

10 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन जीना निश्चय कर के,
न यूँ डर के, न यूँ मर के।

G.N.SHAW ने कहा…

सही समय पर सही व्यक्ति ही काम आते है !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रिश्ते न होँ तो जीवन जीने का मन भी कहाँ करता है ...

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

सार्थक रचना रोशी जी.........

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

अब न घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते -आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तेयारी कर ली थी हमने रिश्तों में उलझने की
दावानल में घिरने की ,अब फिर से है बारी आई
कोई न है विकल्प इस माया जाल का बहु भांति है हम अजमाई
रोशी जी बहुत सुन्दर है काश सब ऐसा संकल्प लें और समाज को उलझने से बचा लें
भ्रमर ५

***Punam*** ने कहा…

सच्चे दोस्त,सगे ,सम्बन्धी और अपनों की
इसी अवसाद ने पहचान कराई !!


अपनों की पहचान मुश्किल समय में ही होती है...!!

रजनीश तिवारी ने कहा…

उलझन रिश्तों की ... सटीक सार्थक अभिव्यक्ति ...

aditi ने कहा…

nice but too technical for me to understand

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...