सब कहते हैं कि इंसान वक़्त के साथ बदल जाया करते हैं
समाज ,तजुर्बे ,उम्र ,रिश्ते आखिर बदल ही देते हैं कुछ इंसानों को
पर जो पाषाण- ह्रदय ही जन्मे थे इस जग में कुछ भीं ना कर पाते हैं
वक़्त,हालत चाहे दे उनको कितनी भी चोटे वे जस के तस रह जाते हैं
क्या देखा है कभी किसी शिला को टूटते समंदर कि लहरों से ??
नहीं ना ,,,ना बदला दुर्योधन और ना ही बदल सका अपने को पापी कंस
ना ही बदली कुटिल चाले शकुनी मामा की और ना ही बदल पाया दुष्ट रावन
यह या तो नियति या फिर प्रवृति का ही होता है खेल
पहले भी सबने की थी पत्थरों से दरिया बहाने की नाकाम कोशिश
पर ना तब ही कंस बदला और ना ही वो सब बदले अब ............
5 टिप्पणियां:
कहाँ हदलते हैं पाषाण हृदय..
सच कहा है आपने ....सार्थक पोस्ट .आभार
जी हाँ ...सच्ची ,सच्ची पंक्तियाँ
एक दम सच लिखा है आपने ...पाषाण ह्रदय कभी नहीं बदलते .
सच है!
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