गुरुवार, 24 मई 2012

भूले बिसरे दिन

बिसर गए वो दिन जब सब भाई बहिन होते थे इकट्ठा
सुबह से होता था जी भरकर उधम ,और हंसीठठठा
ना कोई था समर कैंमप ,ना था होम वर्क का टनटा 
दिन भर थी बस हंसी -ठिठोली और था बस मस्ती का फनडा 
कहाँ गए वो दिन ,वो खिलखिलाहटों से चहकते घर आँगन 
सब कुछ भुला दिया इस जीवन की आपाधापी ने दिन -प्रति दिन 
काश हम लौटा लौटा  पाते   न न्हे नौनिहालो का मासूम बचपन 
जहाँ घुमते वो निर्द्वंद ,लेते भरपूर छुट्टी का वो भरपूर आनंद 
बर्फ का गोला .चुस्की और कच्ची कैरी के चटकारे बड़ा देते जीवन का रंग
कभी जाते थे छत पर ,और सोते थे खुली हवा में लेकर मच्छर दानी  का आनंद 
पर अब तो हो गयी सब भूली -बिसरी बातें  और ना रहे वो आनंद 

6 टिप्‍पणियां:

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

sach me lagta hai ki ab vo din nahi loutne wala .jab parivaar ke sabhi logon ke beech hansi thahake gunja karte the aur ham bachcho ko i to mastiya hi mastiyan thi.vo bachpan kya aaj ke bachchon ko mil paya---- shayad nahi kisse kahniyo ki jagah ab computer mobile aue cartoon ne le liya hai .
sach me ab vo bachpan ke din ek swpn se lgte hain----
bahut bahut hut hi achhi lagi aapki prastuti ---
aabhaar
poonam

संध्या शर्मा ने कहा…

Sundar prastuti... aabhar

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गर्मी की छुट्टियों के वे दिन याद आ गये।

***Punam*** ने कहा…

यादें.....यादें....यादें.....
आपकी.....आपकी......हम सबकी.....!!
एक सी......!!!

sangita ने कहा…

बेहद प्यारी रचना है बचपन यद् आ गया रोशिजी,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सुंदर रचना,,,,,बचपन की यादें ताजा हो गई,,,,,

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