शनिवार, 30 जून 2012

सावन की फुहार



प्यासी धरती ,सूखे अधर ,व्याकुल तन -मन
कातर नैन किसान के है तकते आसमान 
मरणासन्न पपीहा नभ को तके आये न उसको चैन 
अतृप्त चक्षु मांगे इश्वर से बरसा दो जल दिन- रैन 
पपड़ाए अधर और बोझिल काया कहीं न पाए चैन 
धरा ,नर -नारी ,पशु -पक्षी सभी हैं आसन्न और बैचैन 
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन 

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ईश्वर अब तो जल बरसाओ..

रविकर ने कहा…

सुन्दर

रजनीश तिवारी ने कहा…

अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन....सुंदर रचना

रचना दीक्षित ने कहा…

अब बरसा भी दो नेह अमृत सा
और सबकी रूह पाएं चैन..

अब तो पुकार सुन ही लेनी चाहिये इंद्र भगवान को.

सुंदर प्रार्थना.

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...