प्यासी धरती ,सूखे अधर ,व्याकुल तन -मन
कातर नैन किसान के है तकते आसमान
मरणासन्न पपीहा नभ को तके आये न उसको चैन
अतृप्त चक्षु मांगे इश्वर से बरसा दो जल दिन- रैन
पपड़ाए अधर और बोझिल काया कहीं न पाए चैन
धरा ,नर -नारी ,पशु -पक्षी सभी हैं आसन्न और बैचैन
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन
4 टिप्पणियां:
ईश्वर अब तो जल बरसाओ..
सुन्दर
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन....सुंदर रचना
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा
और सबकी रूह पाएं चैन..
अब तो पुकार सुन ही लेनी चाहिये इंद्र भगवान को.
सुंदर प्रार्थना.
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