मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सावन की मस्ती

कब आया सावन ,कब बीता सावन जरा भी ना हुआ इसका गुमां
कहीं भी ना दिखी नवयौवना बढाती झूले की पींगे ,गाती कजरी बनती अद्भुत समां 
बरसते ,लरजते कारे -कारे बदरा भी जैसे भुला ही बैठे मदमस्त आसमां 
दीखे ना कोई प्रेमी युगल बतियाते ,भीगते इस मधुर सावन में 
सब कुछ हो गयी बिसरी बातें ,सावन रह गया कवियौं की कल्पना में 
हरियाला सावन था सिमट गया बस कुछ पन्नो में और रह गया था अतीत की कथाओं में 
अब न सुनाई पड़ती कजरी ,ना सावन के गीत ,ना सुनती पपीहे की आर्तनाद 
क्यूंकि अब हमने ना बचाए पेड़ -पौधे ,ना बाग़, ना बची वो हरितमा 
बना दिया है कंक्रीट का जंगल चहुँ ओर  व्यथित और परेशा नर -नारी  
ना दिखते छप -छप करते बालक ना सावन का आनंद लेते नर -नारी 

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कंक्रीट जंगल में कहाँ सावन की मस्ती ....

विभूति" ने कहा…

सुन्दर रचना.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बरसती बूँदों का आनन्द..

***Punam*** ने कहा…

सावन की मस्ती पहले से अब कम है
बादलों में बूँदें भी पहले से कम है....
झूला अब मैं झूलूं किसके साथ
तेरी पींगों में अब कहाँ दम हैं....!!

***Punam*** ने कहा…

सावन की मस्ती पहले से अब कम है
बादलों में बूँदें भी पहले से कम है....
झूला अब मैं झूलूं किसके साथ
तेरी पींगों में अब कहाँ दम हैं....!!

***Punam*** ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
देवदत्त प्रसून ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
देवदत्त प्रसून ने कहा…

सावन भादों तृषित धरा की,प्यास बुझाने आते हैं|
घन बरसा कर,हरियाली दे,हमें रिझाने आते हैं ||
रेगिस्तानी परिवेशों में वीरानापन हटा हटा -
भावों की नगरी हर दिल में पुन:बसाने आते हैं ||
हर मन में हो भरी सरसता,बहती नदी प्यार की हो|
हर नीरसता दूर करें हम यही सिखाने आते हैं ||

5 अगस्त 2012 10:47 pm

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ....

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