कब आया सावन ,कब बीता सावन जरा भी ना हुआ इसका गुमां
बरसते ,लरजते कारे -कारे बदरा भी जैसे भुला ही बैठे मदमस्त आसमां
दीखे ना कोई प्रेमी युगल बतियाते ,भीगते इस मधुर सावन में
सब कुछ हो गयी बिसरी बातें ,सावन रह गया कवियौं की कल्पना में
हरियाला सावन था सिमट गया बस कुछ पन्नो में और रह गया था अतीत की कथाओं में
अब न सुनाई पड़ती कजरी ,ना सावन के गीत ,ना सुनती पपीहे की आर्तनाद
क्यूंकि अब हमने ना बचाए पेड़ -पौधे ,ना बाग़, ना बची वो हरितमा
बना दिया है कंक्रीट का जंगल चहुँ ओर व्यथित और परेशा नर -नारी
ना दिखते छप -छप करते बालक ना सावन का आनंद लेते नर -नारी
9 टिप्पणियां:
कंक्रीट जंगल में कहाँ सावन की मस्ती ....
सुन्दर रचना.....
बरसती बूँदों का आनन्द..
सावन की मस्ती पहले से अब कम है
बादलों में बूँदें भी पहले से कम है....
झूला अब मैं झूलूं किसके साथ
तेरी पींगों में अब कहाँ दम हैं....!!
सावन की मस्ती पहले से अब कम है
बादलों में बूँदें भी पहले से कम है....
झूला अब मैं झूलूं किसके साथ
तेरी पींगों में अब कहाँ दम हैं....!!
सावन भादों तृषित धरा की,प्यास बुझाने आते हैं|
घन बरसा कर,हरियाली दे,हमें रिझाने आते हैं ||
रेगिस्तानी परिवेशों में वीरानापन हटा हटा -
भावों की नगरी हर दिल में पुन:बसाने आते हैं ||
हर मन में हो भरी सरसता,बहती नदी प्यार की हो|
हर नीरसता दूर करें हम यही सिखाने आते हैं ||
5 अगस्त 2012 10:47 pm
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित ....
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