शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

बरसता सावन

टिप -टिप गिरती बूंदों की आवाज़
कर रही थी यूँ रात्रि की निस्तब्धता भंग
दूर कही कोई छेड़ रहा हो जलतरंग 
झींगुरों की सरसराहट भी बना देती है अद्भुत समां 
कोई है मदमस्त सावन की रूमानियत में 
किसी का होश है हुआ इस सावन में गुमां 
नन्हे बालक ले रहे पूरा आनंद उस घुमड़ते सावन का 
अब कहाँ रहे वो भीगते प्रेमी युगल इस मद मस्त सावन में
हो गयी हैं अब यह किताबी बातें सिर्फ इस जहाँ में 
बदल लिया है अब शायद प्रकृति ने भी अपना स्वरुप 
ना वो रहे काले घुमड़ते ,लरजते ,बरसते मेघ 
न रहा वो सावन में भीगने ,लुत्फ़ उठाने का आनंद  

7 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

कुदरत कसक कुदाँव की, कजरी कहाँ सुनाय |
गर्जन वर्षण भीगना, बदले आज सुभाव |
बदले आज सुभाव, व्यस्तता बंद कोठरी |
काम काम हर याम, चंचला हुई भोथरी |
सत्य-भाव अवसान, झूठ की रविकर फितरत |
बनावटी हर चीज, मिलावट झेले कुदरत ||

अरुन अनन्त ने कहा…

उम्दा रचना
अरुन शर्मा
www.arunsblog.in

Shikha Kaushik ने कहा…

margsheersh mah me savan ka aanand hi kuchh aur hai .sundar post hetu hardik aabhar

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हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

Asha Lata Saxena ने कहा…

आपने बिम्ब बहुत अच्छे चुने |उम्दा रचना है |

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत अच्छा लगा। मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सच कहा है...सुन्दर प्रस्तुति..

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