बुधवार, 15 जनवरी 2014

शरद ऋतू

शरद ऋतू में कभी बंद दरवाजे की झिरी के पास तनिक बैठ के देखो
मिनटों में एहसास हो जायेगा उस बेदर्द सर्द हवा का जो गलाती है हड्डी
रोज उन गरीबो की जिन्होंने कदाचित कभी कपडा ही ना डाला हो जिस्म पर अपने
कभी गुजारकर देखो एक रात बिना किसी छप्पर के ,छत के सिर्फ एक रात
तड़प -तड़प जायेगा वजूद ,सिहर जायेगी आत्मा बगेर किसी आसरे के
होगा शायद थोडा चड भर का एहसास उन बेघरों का जो सिर्फ मिटटी में ही
पैदा होते और वहीँ मर मिट जाते ,बगेर किसी घर -द्वार के
सोने को बिस्तर ,तन पर कपडे ,थाली में भर पेट भोजन
अंग -हीन काया देख करो अदा शुक्रानाउस परवरदिगार का
जो बक्शी है सुंदर काया उसने तुमको और बरसाई हैं ढेरों नेमते तुम पर
रात -दिन मे एक प्रहर सो कर देखो कभी भूखे पेट कुलबुलाती अंतडियो
से होगा महसूस उस भूख का जो कभी ना होने दी महसूस उस विधाता ने तुमको
सिर्फ एक चड का शुकराना ही काफी है उस ईश्वर के वास्ते ,सिर्फ एक चड का
कितनी रहमतें है बरसाईं उसने हम पर,पर हम रहे उसके नाशुक्रे ही ताजिंदगी
ना खुद को रख पाए कभी खुश ,ना सजदा किया दिल से उस उपरवाले का
अब भी है जिंदगी में काफी वक्त उसका शुक्रिया अदा करने का ,सजदा करने का ........... 

1 टिप्पणी:

Bhawna Pandey ने कहा…

sach me hume ishwar kqa nirantar dhanyavaad karte rahna chahiye.

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