गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

                      ...... नारी की व्यथा .......
जीवन के अतीत में झांकने बैठी मैं पायी वहां दर्दनाक यादें 
और रह गयी स्तब्ध मैं ..समूचा अतीत था,  घोर निराशा और अबसाद में  लीन 
 कुछ भी ना था वहां खुशनुमा ........थी बस जिंदगी बदरंग और उत्साहहीन

 सपनो ने भरे  नये  रंग  भविष्य ने बुने सपने यादें कर घूमिल सजा लिए रंग जीवन में अपने..................
आज तक ढो रही थी जिन  लाशों का गठ्ठर तिल - तिल कर जी रही ,प्रतिदिन मर मरकर  शर्म और हया का उतार फेंका झीना आवरण जो था  वर्षो का बोझ सर पर 
बच्चों ने था ठहराया सही यही मेरी तपस्या का है..फल ☺☺
दफ़न कर गहरे में उस गठ्ठर को निज जीवन किया सफल 
जमाना भी देता  है नारी को घातक ताप
 वर्षो से यही हैं नारी की पीड़ा,भोगा हैं नारी जात ने इसका संताप 




2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Roshi ने कहा…

dhanyabad shastriji

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...