बुधवार, 26 अगस्त 2020

माँ
माँ तो ईश्वर से प्राद्त्त अनुपम सौगत होती है
गर्भ से लेकर जीवन पर्यत बालक को अपना सर्वस्व देती है
बालक  मुसकाए तो माँ खिलखिलाए, कदाचित रोए तो खून के आंसू रोती है
बालक पर  सर्वस्व न्यौछावर  और उसके इर्द गिर्द ही अपनी दुनिया बुन लेती है
नित नूतन सपनो का जाल, माँ शिशु के वास्ते बुन लेती है
बालक की आँखो से ही माँ सारे ब्रह्माण्ड है देखती
तोतली जुबां से सारी भाषाएँ गुनती और समझती है 
 माँ को  करते  नमन  देवता  और   दुनिया भी सलाम करती है
सिर्फ एक दिन ही उस माँ के लिए दुनिया मदर्सडे मनाती  है 
साल के 365 दिन भी हैं कम ,मगर दुनिया उसकी एहमियत  माँ के कूच कर जाने के बाद समझती है 

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सही बात है । मां मां है ।

Amrita Tanmay ने कहा…

हाँ ! ऐसा ही होता है ।

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