एवं सबकी हार्दिक शुभ कामना
आपका अस्तित्व दिलाता है एहसास हम सबको बखूब
मानो पूर्णतया सुरक्षित,महफ़ूज है हम सबका वजूद
जिसके तले पली-बड़ी हैं ढेरों लताएँ ,पादप और वल्लरियाँ
पाया था जिन्होने सम्पूर्ण आश्रय ,थी गूंजी जिनकी किलकारियाँ
बट-व्रक्ष ने बांटी है समान धूप ,ज़मीन सबकी की हैं कम दुश्वारियाँ
ढेरों परिंदे बनाते नव नीड़ और त्याग जाते निज बसेरा उस बृक्ष का
कभी ना मांगा था उसने हिसाब उनसे साथ अपने बिताए लम्हों का
हाथ फैला समेटा था सबको बखूबी अपनी शाखों में ,अपनी देकर शीतल छाया
देना ही तो ब्रक्ष की सदियों से रही है अद्भुत ,अपार प्रक्रतीc
निभा रहा है ये ही अद्भुत धर्म बखूबी वो सतत आज भी
बट बृक्ष के पत्ते ,टहनियों और शाखों में आज भी है बही दमखम
जब वर्षों पहले अपने रूप और आकार को उसने पाया था विशाल ,नवीनतम
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