रविवार, 19 अप्रैल 2020





बच्चों की चहचहात ,शोर और खिलखिलाहट
जो हो गयी थी गुम कहीं ,लौट आयी वापिस उनके अधरों में
बुजुर्ग जिनकी आँखें थी पथराई  तक्ते थे जो  बेटा- बहू का पाने को साथ
अंदर -बाहर की आपाधापी में भागा पड़ा था पूरा परिवार
सिमटते ,पारिवारिक मूल्यों ने पाया पुनर्जीवन ,जी उठे परिवार
माँ-बाप जो थे तरसते दो मीठे बोलों को, अपनी वीरान कोठरी में
कम से कम अब सुनते हैं बच्चों, बेटा बहू की खिलखिलाहट अपने अंगने में
कुक जो खिलाता था बेस्वाद खाना, आश्रित था परिवार उसके
रहमोकरम पर
आजकल तो मम्मी नित नई रेसिपी कर रही है ट्राइ
बच्चे ,बुजुर्ग सब हैं आनंदित हैं रोज नया फ्राई
जो कभी ख्वाब में भी ना था सोचा ,कोरोना ने हमारे परिवारों को दिखाया दिया वो मौका
पहचानने को अपने परिवार की एहमियत ,बुजुर्ग माँ बाप का प्यार
महसूस करने को बच्चों का मासूम बचपन और समझने को अपना घर संसार

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

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