कोई भी परिवर्तन हिला जाता है सम्पूर्ण वजूद
परिवार,समाज ,काया ,जीवन चाहे हो व्यापार में
आसानी से दिल -दिमाग नहीं स्वीकारता किसी भी रूप में
अभ्यस्त हो जाती है ज़िंदगी हमारी पुराने स्वरूप में
अक्सर बदलाव ज़िंदगी में नया रुख अख़्तियार कर लेते हैं
इतिहास साक्षी है परिवर्तन ने मोड़ा है सदेव समाज का रूख
आखिर क्यौ नहीं हम बदलाव को आत्मसात कर पाते काश?
खुद भी मुत्मइन रहते ,दूसरों को भी खुश रख पाते
रोशी --
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