मंगलवार, 1 मार्च 2022

 क्यौ कर हम लगे हैं खुद को सर्वश्रेस्ठ सिद्ध करने में ?

एक लम्हे को भी कदापि ना सोचते इस दौड़ को रोकने में
अपनी सीमाओं ,छेत्र विस्तार ,पराए देश को हड़पने जैसी तुच्छ हरकतों में
झोंक देते हैं सारी ताकत ,राष्ट्रिए संपदा ,सैनिक ,बालक और जवानों को इसमें
बदले में क्या मिलता है ?अनाथ बच्चे ,विधवाएँ ,खंडहरऔर सर्वत्र विनाश को
देखकर भी ना आत्मा है सिसकती ,ना है कसम खाते इस मंजर को दुहराने को
कमजोर मछ्ली को जैसे हड़पने को रहते हैं तैयार मगर जल में हर -पल सदेव
ऐटमी बम ,मिज़ाइलें ,तोपें ,गोला बारूद सबके पास है तैयार उसी भांति सदेव
जिधर चाहा मुख मोड़ दिया अत्याधुनिक जखीरे का , कमजोर भर आ जाए नज़र
यह कदापि ना सोचा कि हिरोशमा-नागासाकी की तबाही का खामियाजा नस्लें भुगत रही है आज तक ,हम भी ना जबाब दे सकेंगे उस तबाही का कभी कर
हम परमाडु-बम छोड़ेंगे तो हमारे राष्ट्र ,हमारी नस्लें सब को भी भुगतना होगा इसका दुश -परीड़ाम बरसों तक
आज भले ही कब्जा कर लें एक मामूली जमीन के टुकड़े पर ,देना होगा इसका जबाब सालो-साल बरसों तक
रोशी --

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