शनिवार, 14 मई 2022

 बच्चे होते हैं मासूम और नादां

बालसुलभ नादांनियां कर बैठते हैं होकर परेशा
हम करते हैं बेबजह दंडित होकर उनको परेशा
कभी खुद पर किया गौर," हम कहाँ के सच्चे थे "?
कितनी नादांनियां,हरकतें ,शैतानियां करते थे
मस्ती ,झूठ ,उछल-कूद बेखौफ सब करते थे
आज सोच कर हंसी नहीं रुकती ,करते सब बेबकूफी थे
तो आज फिर क्यौ उसी जुर्म की सजा बच्चों को देते ?
जब हम ना थे कभी सच्चे ,फिर बच्चे क्यौ सजा भुगते ?
रोशी --
May be a cartoon of child and text
Ruchi Singhal
1 Comment

कोई टिप्पणी नहीं:

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...