साथी हाथ बड़ाना,एक अकेला थक जाएगा मिल कर बोझ उठाना
देखा चरितार्थ होते ,जब अनेकों ने एक कन्या के विवाह का था विचार ठाना
थोड़ा -थोड़ा सबसे लेकर ही कन्या की गृहस्थी का समान था जुटाना
बूंद -बूंद से देखा साक्षात घड़ा भरते ,पूरा दहेज का समान जुटते उसके घर
बेटी को मिल गया भरपूर दहेज ,जा सकेगी वो खुशी से अब साजन के घर
कम से कम उस मासूम को ना मिलेंगे अब ससुराल से कम दहेज के ताने
एक लड़की तो है अब सुरक्षित ,सो सकेंगे उस गरीब के माँ-बाप उलहाने से
दिल को आता सुकून कि नेक काम का व्रत सफल हुआ आज सबका
कन्या -विवाह से बेहतर कोई दूजा महा -यज्ञ है दुनिया में कोई ना दूजा
रोशी --
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