आजकल हर इंसान में उबासी ,निद्रा दिन में भी दिखती है
रात्रि ज़्यादातर हर किसी की सोशल -मीडिया के सहारे ही कटती है
कार्य -छमता कम और ज़िंदगी ऊलजलूल हरकतों में ही कटती है
बच्चे -बूड़े सब हो रहे अभ्यस्त सबकी इसके साथ छनती है
जो रहते इससे दूर कामयाबी उनके साथ चलती ही है
दोष देते हैं बड़ी आसानी से किस्मत को ,अपनी गलती नहीं दिखती है
जब जागोगे रात भर उल्लू की मानिद,तो जीवन का लक्ष्य क्या पाओगे ?
बुजुर्गों के अनुसार जीवन जियो ,कामयाबी के परचम लहराओगे
4 टिप्पणियां:
यही तो रोना है आज के बच्चों और बड़ों का
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 28 जून 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
समसामयिक
बिलकुल ठीक कहा आपने !!
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