ज़िंदगी में क्यूँ इतनी भागम-भाग हो गयी है
सूर्योदय के साथ ही रोज़ दिखती सरेआम है
बालक स्कूल,ट्यूशन और,माँ-बाप दफ्तर जा रहे हैं
बुजुर्ग पार्क जा रहे ,कर्मचारी काम पर जा रहे हैं
किधर भी नज़र ना आता ,बैठा कोई भी सुकून से
कोई भी,बतियाता ,हँसता -खिलखिलाता दिखता ना सुकून से
यह जिंदगी का मंज़र दिखता है रोज़मर्रा में सभी को यकीन से
कुछ पल अपने लिए गुजार लो बेफिक्री से..क्या मालूम कल मिले ना मिले तुमको नसीब से
अपनी खुशी के लिए भी बचा कर रखो नित कुछ लम्हे ,जिन पर हक़ हो सिर्फ तुम्हारा ही पूरी शिद्दत से
4 टिप्पणियां:
समय की मांग
कुछ पल अपने लिए गुजार लो बेफिक्री से..क्या मालूम कल मिले ना मिले तुमको नसीब से
बिल्कुल सही,समझ ही नहीं आता क्यूं भाग रहे हैं हम और कहां जा कर रुकेंगे,सादर
सही कहा कितनी भी भाग्य भाग क्यों न हो कुछ पल तो स्वयं के लिए होने ही चाहिए।
सुंदर।
भागम भाग पढ़ें कृपया।
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