सावन की पहली फुहार कर जाती मन हर्षित हर बार
मिट्टी की सोंधी खुशबू बिखर जाती फिज़ा में हर बार
अंगार सरीखी धरा पर जब पड़ती पहली बौछार एक बार
तप्त तवे को जैसे जल की बूंद करती शीतल हर बार
खेत -खलिहान हुलस पड़ते जब उन पर गिरती प्रथम बौछार
सम्पूर्ण धरा जो रही थी झुलस ,निखर उठती पाकर शीतल वयार
नर -नारी ,पशु -पक्षी सब थे व्याकुल बरसते अंगारों से
खिल उठे सबके चेहरे सावन के पहले -पहले छींटों से
रोशी--
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