सावन की बदरी ने भी शुरू कर दिया है पक्षपात
जिधर नहीं है जरूरत बरस रही बेलगाम ,कर रही बेहाल
घनघोर गर्जन ,तड़कती बिजली कर रही अद्भुत प्रहार
जन -जीवन बेहाल ,बाड़ का प्रकोप सर्वत्र जीवन बदहाल
कंही है भयंकर सूखा ,ना है कहीं बारिश की बूंद का भी हाल
त्राहि -त्राहि छाई सर्वत्र पशु -पक्षी भी व्याकुल सभी हुए बदहाल
हे इन्द्र देव कर दो हम पर भी कृपा -दृष्टि ,सब हैं बेहाल
कुछ जल बरसा कर ,ताप से मुक्ति दो ,सबका जीवन हुआ बदहाल
रोशी --
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में" (चर्चा अंक-4492) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सावन की बदरी ने भी शुरू कर दिया है पक्षपात
जिधर नहीं है जरूरत बरस रही बेलगाम ,कर रही बेहाल
सच में मौसम भी पक्षपात कर रहा है।
बहुत सुंदर सृजन।
बहुत सुंदर यथार्थपूर्ण अभिव्यक्ति
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