ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा है हमने
ढेरों उतार -चड़ाव होते रोज़मर्रा में देखा है हमने
जो जीते थे शाही अंदाज़ में ,ख़ाक में मिलते देखा है हमने
अपने नकली खोल में सिमटे बहुतेरों को देखा है हमने
जो जिये जा रहे थे क्रिटिम आवरण ओड़े उनकी उतरन को उड़ते देखा हमने
चादर से निकाले जिसने भी पाँव उसको जमीं चाटते देखा हमने
ढेरों रिश्तों को रंग बदलते ,और खून सफ़ेद होते देखा है हमने
जिनके पाँव ना टिके कभी जमीन पर खजूर के पेड़ पर अटकते देखा है हमने
जिन पर था खुद से ज्यादा भरोसा रातों -रात दल बदलते देखा हमने
क्या तुझको बताएं ए ज़िंदगी आईने में अपने ही अक्स को रंग बदलते देखा हमने
रोशी --
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें