नारी ही होती है घर क़ी धुरी, घूमती है जिसके चहुं ओर कायनात सबकी
उसके जगते चूल्हा सुलगे ,बर्तन भी बतियाना शुरू हो जाते शक्ल देख उसकी
अदरक की चाय से सुवासित रसोई है महके ,नाश्ते की खुशबू से मन है चहके
आँगन ,चौबारा गृहडी से ही चमके ,कमरा ,बैठक उसके दम पर ही दमके
मिष्ठान ,स्वादिष्ट व्यंजन मिलते हैं अतिथि ,परिवार और बच्चों को
चमकते वस्त्र ,सुसज्जित घर भर देता उत्साह जीवन में ,देता उमंग जीने को
बिन नारी घर भूतों का डेरा ,अव्यवस्था ,गंदगी ,का सिर्फ होता बसेरा घर में
जिस पर बीते वो ही जाने ,हो जाता है ढेरों दुश्वारीओं का आगमन जीवन में
-- रोशी
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