इतिहास गवाह है हम दिए जलाते हैं ,रोशनी करते हैं
राजा राम अयोध्या वापिस आये ,सीता जी के साथ
दीपावली का त्यौहार सदेव हम इसी ख़ुशी में मनाते हैं
कंही भी जिक्र नहीं है उर्मिला और लक्षमन की ख़ुशी का
उन दोनों का भी वनवास ख़त्म हुआ है आज १४ वर्ष का
उर्मिला ने अयोध्या में १४ वर्ष सिर्फ जागते हुए बिताये
वन में लक्ष्मण भी इतने वर्ष कहाँ एक पल भी थे सो पाए ?
तपस्विनी की भांति जीवन था गुजारा उर्मिला ने,तिल-तिल वो रोज़ जली थी
एकटक देखती थी वो उस राह को जो अचानक काँटों से भर गयी थी
इसी राह से गए उसको अकेले ,सुने महल में छोड़ पति भाई-भाभी के साथ वन को
पर इतिहास खामोश रहा सदेव उनकी व्यथा ,गहन पीड़ा ,तकलीफ बताने को
ना बाल्मीकि ने झाँका उनके जीवन में ,जहाँ था गहन अंधकार ,उनके जीवन पर
ना तुलसीदास ने मानस में उनकी व्यथा थी कभी दर्शायी, कुछ उनपर लिख कर
उर्मिला,लक्ष्मण सरीखा उधारण ना है दूजा, है जिसने प्रेम की विधा है सिखाई
भात्र प्रेम ,सातवचनों को था दोनों ने शिद्दत से निभाया पर दुनिया ना जान पाई..
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