विभीषण था भाई रावण का पर स्वभाव साधू सा पाया
दुर्योधन का साथ रहा सदेव पर कुटिलता मृत्यु तक ना त्याग पाया
जन्मजात गुण -अवगुण सदेव रहते साथ जीवन भर कोई ना बदल पाया
सर्प भले ही लिपटे रहें चंदन पर ,जहर उगलना ना त्याग पाया
प्रकृति प्रदत्त स्वभाव कदापि कोई लाख जतन कर ले ना बदल पाया
सत्संगति ,संस्कार ना बदल पाए कभी किसी की दुर्बुधि यह इतिहास ने बताया
अहम् ,इर्ष्या,द्वेष,लिखे होते हैं उसकी नियति में ,विधाता ने ऐसा उसको बनाया
प्रेम ,संस्कार ,विद्या कुछ भी ना ला सकते बदलाव ,यह ईश्वर ने है बताया
ह़ार गए कृष्ण ,विभीषण,सरीखे जैसे संत पर कुटिलता कोई ना तज पाया
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