औरत ना पहले आजाद थी ,ना अभी स्तर बदला है समाज में उसका
हैसियत अभी भी वही है जो सदियों पहले मापदंड था तय उसका
अखबार ,न्यूज़ -चैनल ,समाज सर्वत्र खबर औरत ही है
दहेज़ ,रेप ,भ्रूर्ण हत्या दरिंदगी सिर्फ नारी के साथ ही है
तलाक जैसी कुप्रथा सिर्फ उसके वास्ते है ,सदियौं से वो सहती आई है
पहुँच गए हैं चाहें चाँद पर पर घर के चाँद को खुला आसमां नसीब नहीं है
खिड़की -दरवाजे सब बंद हैं ,अक्सर उनके वास्ते रोशनदान भी मयस्सर नहीं है
अब नारी अपने हक ,जिम्मेदारी बाखूबी जान गयी है ,पर जुबां उसकी सिल गई है
बदलाव तो हुआ पर बहुत मामूली ,निम्न स्तर पर उसका ओहदा आज भी वहीँ है
--रोशी
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