मौसम की अतिवृष्टि ने त्योहारों का मज़ा फीका कर दिया था जिसका पूरे वर्ष शिद्दत से इंतज़ार
किसान जो अपनी गन्ने ,धान की फसल और कमाई का कर रहा था इंतज़ार
सारे ख्वाब हूए चकनाचूर उसके ,खाने को दाना नहीं ,जेब में पैसा नहीं सब बह गया पानी में
कुम्हार जिसने महीनो जतन से बनाए थे दीपक ,खिलौने सब के सब घुल गए पानी में
सारा परिश्रम गया व्यर्थ ,बच्चों के सुनहले सपने सभी बह गए इस बेमौसमी बरसात में
पटाखे ,झालरें ,दीपक बनाने वालों पर टूटा है बारिश का कहर ,खुशी से ना मनेगा सबका त्योहार
श्रमिक वर्ग बैठा घर पर खाली ,पानी ने मचा दी चहुं ओर तबाही वो खाली हुआ बेरोजगार
बाज़ार हूए खाली ,छाई है बे-रौनकी हर ओर बस दिखता है पानी ही पानी चहुं ओर
यही करते है अर्ज़ रब से कि रोक दो अति व्रष्टि , बरसाना बंद कर दो अब पानी
जरूरत है ना अब इसकी, त्रस्त हुए जन- मानस बस रोक लो अब बरसाना पानी
--रोशी
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