आधुनिकता का जमा पहनाकर टीवी पर नित क्या परोसा जा रहा है
चरमराती परिवारिक व्यवस्था ,बहकती युवा पीड़ी का बदहाल चित्रण रोज़ दिखाया जा रहा है
किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज और ,कितना पतन होना बाकी है समझाया जा रहा है
सौतेले मां -बाप ,सौतेले बच्चे किस तरह से जी रही है आधुनिक पीड़ी, सब को बताया जा रहा है
खोखले रिश्तों में आधुनिकता का रंग चड़ाकर पेश प्रतिदिन किया जा रहा है
पद-प्रतिष्ठा ,धन -दौलत का अँधा-धुंद प्रदर्शन इस व्यवस्था में आग में घी सरीखा काम कर रहा है
बेहूदा कहानियां पेश कर समाज को क्या सन्देश देना है ,,मकसद नहीं समझ आ रहा है
सेंसर जैसी व्यवस्था लागू कर ,इन सीरिअलों पर कुछ विराम लगाना अब जरूरी होता जा रहा है
कुछ अरसे बाद ऐसा ना हो कि टीवी खोलना भी भयंकर त्रासदी का सबब हमारे लिए बनता नज़र आ रहा है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें