मुख में राम,बगल में छुरी रखे ढेरों बंदे मिलना आम है
हम उनको कितना पहचान पाते हैं यह हुनर हमारा खास है
इंसान को परखने का हुनर ईश्वर ने सबको बक्शा है बहुतायत में
कभी जल्दबाजी ,कभी बेबकूफी कभी बेइंतेहा भरोसा सब में
इतिहास गवाह है हमने धोखा सदेव अपनों से ही खाया है
एक दूजे से मोहब्बत के ख़ूबसूरत एहसासों से होती सबकी दुनिया मुक्कमल
गर धोखा,खंजर ना होता मोहब्बत के साथ हमारा इतिहास भी कुछ और कहता
--रोशी
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