एक तो शीत लहर उधर से बारिश का कहर
ईश्वर रहम कर अपने बन्दों पर ,ना झेला जाता अब मौसम का कहर
बिन छत के जो जी रहे हैं उनपर अब थोड़ा रहम कर
एक गुदडी में जो काट रहे हैं रातें कुछ उनका भी ख्याल कर
पूस की मावट ना झेली जाती ,सांसे भी हैं अब भयातुर
प्रकृति की रफ़्तार भी अब पड़ गई है सुस्त ,सर्वत्र है छाया शीतलता का कहर
बरसे ना अब जल की बूंदे कर दो अपने बन्दों पर मेहर ..
--रोशी
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