कैसे मां समझ लेती है नवजात के दिल का हाल ,जो समझ से परे है सबके
बालक से बातें करती है ,अपनी बातें नवागत के दिल तक पहुंचाती है हक से
बच्चे की पीड़ा ,ख़ुशी आँखों में झट पड लेती है ,क्या -क्या जादू वो जानती है
गृहस्थी की गुत्थियों को सुलझाना बाएँ हाथ का खेल है,जो बाखूबी वो जानती है
ईश्वर ने बनाया मां को पूरी तवज्जो के साथ कायनात की खूबियाँ दे डालीं उसको
हालात चाहे जैसे हों मां के,अपना सब कुछ औलाद पर वारने को रहती सदा तैयार
एक बार मां से बात कर हम कर लेते हैं अपने कर्तव्यों की इतिश्री हर बार
कभी तीज -त्यौहार पर जाकर पूछ लेते हैं हाल-चाल साल में एक आध बार
मां के लिए वो दिन ही बन जाता त्यौहार जब उसकी औलाद आती उसके घर द्वार
बच्चे दो -चार फरमाइश ही पूरी ना होने पर माँ को देते हैं झट से त्याग
मां ही वो शख्सियत है जो कर देती है सौ गुनाह भी औलाद के दिल से माफ़
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