कश्मीर की व्यथा
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क्यों आप सबने मुझको अपने वजूद से जुदा कर दिया ?
हिस्सा था में आपका क्यों कर मुझको तनहा कर दिया ?
कभी होते थे मेरे शिकारे भी सैलानियों से गुलज़ार
केसर की लाजबाब खुशबू ,फूलों की वादियाँ थीं पहचान मेरी
चिनार के दरख़्त आज भी ख़ामोशी से राह तकते हैं तेरी
कहवा के प्याले ,रोगनजोश की खुशबू तैरती है आज भी फिजां में मेरी
आतंकवाद,बम ,गोलियां ही बस अब सिर्फ़ रह गई है पहचान मेरी
गुजारिश है आवाम से मिल-जुल कर दो आवाज़ बुलंद मेरे हक की
टूट जाएँ हौसले चीन और पाकिस्तान के जब वो सुने आवाज़ पूरे हिन्द की
रोशी
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