मंगलवार, 31 जनवरी 2023

 निया भरी पड़ी है ढेरों इनायतों और महरूमियों से

कितनी खुशिओं से नवाज़े गए हमको नहीं पता रब से
पूरा दिन गुजर जाता है अपनी तकलीफों को गिनते- गिनते
दो घडी बैठो निशब्द,जिन्दगी कम पड़ जाएगी उसकी इनायेतें गिनते -गिनते
तकलीफों ,दुःख ,मजबूरियो ने गिरफ्त में जकड लिया है आम इंसान को
रोटी ,कपडा ,मकान भी मयससर नहीं दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को
रब की मेहर जो है हम पर शुक्रिया सौ बार दिन में अदा करो उसको
गर देखोगे दूसरों की तकलीफें गौर से ,अपनी इनायतें लगने लगेंगी बेहिसाब
मिलेगा दिल को सुकूं गर खुशियाँ दूंढ ली खुद अपने अन्दर झांक कर बेहिसाब
रोशी
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