कब किस,मोड़ पर जिन्दगी ले बैठे खुशनुमा मोड़ नहीं होता पता
ऊपरवाला कब कर देगा रहमतों की बरसात खुद को नहीं पता
जिन्दगी की राह में बिखरे पत्थर कब बन जाते फूल नहीं होता पता
रास्ते आसां नहीं होते किसी के भी शूलों पर खुद ही गुजरना होता है
तजुर्बे जो मिलते है बेशकीमती नाकामी से उनको संजोना होता बहुत जरूरी
गहन तमस से गुजरकर ही रोशनी का आनंद ,सुख किया जा सकता महसूस
ज्यों प्यासे को दूर मरुस्थल में जल की एक बूँद ही होती काफी बुझाने को प्यास
रोशी
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