द्रोपदी ने गर ना दी होती उलहाना दुर्योधन को तो ना होती महाभारत की घटना
तुलसीदास को गर ना डी होती पत्नी ने उलहाना तो महाकाव्य की ना होती रचना
सीता ने ना लांघी होती लक्ष्मणरेखा ना भस्म होती रावण की स्वर्ण लंका की शान
शिशुपाल ने ना लांघी होती मर्यादा तो यूं अपने भाई के हाथों ना गंवाई होती जान
एक्लव्य की ना होती गुरु से भर्त्सना तो पिछड़ जाता वो लगाने में अचूक निशाना
कंस ने गर खाया होता रहम बहन पर तो ना जाती सगे भांजे से उसकी जान
कितने भी कर ले कोई लाख जतन, पर होनी होती है बहुत बड़ी और बलवान
रोशी
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