ख़ुशी कुछ देर और तकलीफें क्यूँ ज्यादा टिकती हैं
हम स्वयं इसके जिम्मेदार खुद -बा खुद होते हैं
ख़ुशी के पल संजोने में कोताही करते हैं
ग़मों को सीने के अंदर दफ़न कर लेते हैं
गर झटक दें दिल दिमाग से कुछ पल में
रोम रोम से ख़ुशी का इज़हार करते हैं
परेशानियों का दिमाग में बसेरा कर बैठते हैं
अनिद्रा ,तनाव के शिकार हो मरीज़ बन जाते हैं
ख़ुशी में निरोग ,मस्त काया हम सब पाते हैं
जीवन में क्या बेहतर है चुनना हमको है
जिसने समझ लिया वो ही निरोगी काया पाते हैं
रोशी
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