दरत का कहर विभिन्न रूपों में दिखता है रोष
कहीं है भीषंड गर्मी ,कंही है जबरदस्त बाड़ का प्रकोप
जान -माल को रौंदती जल की प्रचंड धारा तहस -नहस करती धरा को
खेत -खलिहान हुए सराबोर जल से ,सर्वत्र जल प्रपात लील गया धरती को
बेघर हुए नर -नारी ,मवेशी बहे, डूब गया छप्पर बचा ना कुछ खाने को
बर्बाद होता समूल वही फर्क ना पड़ता और किसी व्यक्ति को
सूखा ,बाड़ ,भूकंप सरीखी आपदाएं कर देती नष्ट सिर्फ निर्धन को
'कोड़ में खाज' कहावत को शायद वो लिखवा कर लाया जीवन भर को
--रोशी
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