शनिवार, 22 जनवरी 2011

''अतिथि देवो भव:''

''अतिथि देवो भव:'' बचपन से सुनती आई
बचपन से घर में भी स्वागत और सत्कार देखती आयीं
मौसी, भाभी ,चाची और बुआ का भी सपरिवार आना
बच्चो का भी धमाल, कूदा-फांदी और शैतानी मचाना
सभी रिश्तेदारों का मिलजुल कर काम में हाथ बंटाना
सारे बच्चो का आपस में झगड़ना और रूठना
माँ और मौसी की आपसी गपशप  और चहकना
आज कितनी बदल गई है ''अतिथि देवो भव:" की परिभाषा
घरवालों की जानने की पूरी आशा ?
अतिथि भी पूरी मेहमान नबाजी का मजा ही उठाना चाहता है भरपूर
आता है वह अपने घर से थका हारा- पूरा ही मेहमान बनकर
टीवी, ए. सी , नौकर-चाकर का भी उठाना चाहता है पूरा आराम
और सोते वक्त भी चाहिए पूरा सम्मान
कर देती हैं घर बालों  की  नींद हराम
सारी परिभाषाएं बदल गईं है, बदल गयें हैं "हम और आप"
हम अपनी मानसिकता बदलकर क्यों नहीं गढ़ते
एक नया समाज जहाँ हो "सिर्फ और सिर्फ प्यार"
जहाँ हम करें मेहमान का इन्तजार और वो पाय हमसे ढेर सा "प्यार प्यार प्यार" ....

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम अपना ही दायरा समेटते जा रहे हैं।

Kailash Sharma ने कहा…

आज की तो मानसिकता है कि अतिथि कब जाओगे..पहला जैसा प्यार, सत्कार और अतिथि देवो भव की भावना कहाँ है..सुन्दर प्रस्तुति

JAGDISH BALI ने कहा…

Right U are.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

आतिथ्य सत्कार की परम्परा ही खो गयी है.....

Kunwar Kusumesh ने कहा…

"हम अपनी मानसिकता बदलकर क्यों नहीं गढ़ते
एक नया समाज जहाँ हो "सिर्फ और सिर्फ प्यार"
जहाँ हम करें मेहमान का इन्तजार और वो पाय हमसे ढेर सा "प्यार प्यार प्यार"


बहुत सुन्दर बात कही है आपने

Creative Manch ने कहा…

bilkul sahi kaha

aajkal kaun apne ghar atithi chaahta hai ?
wo apnapan gaayab hi ho gaya
sundar post
aabhaar

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...