कल गई थीं चिकित्सक को दिखाने स्वयं का गला
अचानक एक जर्जर काया वृद्ध सपत्निक आया था वहां
वृद्ध ने लगभग रोते हुए डॉक्टर से फ़रमाया जरा
कई दिन से डॉक्टर साहब कुछ न खा पाया हूँ अन्ना जरा
वृद्धा भी विलाप कर रही थी और कह रही थी मनुहार
डॉ. बाबू पता नहीं क्या हो गया है ?
ठीक से देखो जरा और करो उपचार
तभी हमारा माथा ठनका की है कुछ बड़े खतरे के आसार
अम्मा कोई अगर है साथ में तो उसको बुलाओ यहाँ पर आज
वृद्ध बोली हम ही हैं जो भी हमें बताओ साफ़
माता जी खतरा है बड़ा, कैंसर से है पूरा गला भरा
ले जाना चाहो तो करो बड़े शहर में जाकर बात
बह वृद्ध और उसकी पत्नी रह गए हक्के- बक्के एक साथ
जैसे मानो की छा गया हो अँधेरा कमरे में उस रात
सुन वहीँ के वहीँ बैठे रह गए, उठ भी न सके एक साथ
गले के कैंसर से भी बड़े कैंसर से जूझ रहे थे वे आज
गरीबी, लाचारी, अकेलापन और भी थीं कई बीमारियाँ
जो पहले से घेरे थी उनको एक साथ
इस कैंसर ने तो उन बिमारिओं में जैसे चार चाँद लगा दिए हों हाथो- हाथ
दिल्ली जाना और इलाज करवाना क्या हो
सकेगा संभव अब उस वृद्धा के साथ
शायद अब दिन बचे थे १० - १५ ही उसके पास
शायद अब दिन बचे थे १० - १५ ही उसके पास
क्या जी पायेगा वह अपना जीवन ?
क्यूंकि गरीबी है जीवन पर्यन्त उसके साथ ?
जो करती है जीवन का नाश ?
जो हर गरीब पर पड़ती है भारी ?
गरीबी है इन्सान की लाचारी ? ...
3 टिप्पणियां:
बहुत ही कारुणिक चित्र खींचा है आपने अपनी इस रचना में!
सच में गरीबी से बड़ी कोई बीमारी नहीं।
वाकई गरीबी से बड़ी को बीमारी नहीं है, बहुत मार्मिक लिखा है आपने
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