गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

अपनों और गैरो के समीकरण

हमने अपनों को चाह, उन्होंने की वेबफाई 
गैरो ने दिया साथ हमेशा और पीठ थपथपाई 
अपनों ने सदैव खोंपा खंजर और उफ़ भी न कर पाई 
गैरो ने लगाया मरहम और साथ ही दवा पिलाई 
अपनों से पेश आए प्यार से और बदले में मिली खाई 
गैरो ने समझा दर्द हमेशा और न की कभी रुस्बाई 
अपनों ने किया मजाक और हर बात हंसी में उड़ाई 
गैरो ने हमको समझाया और उनकी गन्दी फितरत बताई 
अपनों ने रुलाया हमेशा और मिलने पर बेरुखी दिखाई 
गैरो ने बदाय हौसला और पास आ कर हिम्मत बंधाई 
कौन है अपना इस जग में यह मई आज तक ना समझ पाई 
अपनों ने कीं सामने मीठी- मीठी बाते गैरों ने कड़वाहट भी समझाई 
अपनों और गैरो के समीकरण में ही रहीं उलझी जिंदगी 
चाह कर भी इनके ताने बानो से आज तक न निकल पाई ... 
आखिर किया है अपनों और गैरों की गहराई ? 

16 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जिन पर हमको आस,
उन्होने तोड़ दिया विश्वास।

amit kumar srivastava ने कहा…

yahi to asmanjas hai ....bahut khoob..

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

सादर

Sushil Bakliwal ने कहा…

करें क्या आस निरास भई..

रजनीश तिवारी ने कहा…

जिसने साथ दिया वही अपना ..
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

अपनों ने कीं सामने मीठी- मीठी बाते गैरों ने कड़वाहट भी समझाई
अपनों और गैरो के समीकरण में ही रहीं उलझी जिंदगी ...


बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

Vijuy Ronjan ने कहा…

Apne aur Gairon ke samikaran ka bahut hi achha vishleshan kiya hai aapne...
hamari peeth pe apne hi khnzar chubhate hain...
gairon ki kya baat karein ham,
gair to fir bhi malham lagate hain...
ati uttam...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना| धन्यवाद|

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.

केवल राम ने कहा…

अपनों ने कीं सामने मीठी- मीठी बाते गैरों ने कड़वाहट भी समझाई

यही तो अपने और गैरों में अंतर है ...जिसे वक़्त आने पर ही पहचाना जाता है ....एक सार्थक रचना आपका आभार

Kailash Sharma ने कहा…

यही तो आज के जीवन का यथार्थ है..बहुत भावपूर्ण रचना

Sunil Kumar ने कहा…

अपनों और गैरो के समीकरण में हुई उलझी जिंदगी , सुन्दर और प्रशंसनीय अभिव्यक्ति , बधाई ......

Vivek Jain ने कहा…

बहुत शानदार! सुंदर शब्दों में गहरी बात
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

virendra sharma ने कहा…

gairon ko sunaa tumne ,gairon se kahaa tumne ,
kuchh hamse sunaa hotaa ,kuchh hamse kahaa hotaa .
kaun apna kaun paraayaa ,
jab socha tab sir chakraayaa .
achchhi prastuti hai aapki -anubhoot satyon par kaabiz .
veerubhai .

Dr Varsha Singh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.

विशाल ने कहा…

गैर भी अपनों से होते हैं और अपने भी गैरों से.फितरत की बात है.
बहुत गहन रचना.

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