शुक्रवार, 20 मई 2011

इंतजार

अपनों के दूर जाने की वेदना कर देती है व्यथित 
उनके घर आने की ख़ुशी भी न दे पाती है दिल को सकूं
बस दिल सोंचता है हरदम है उनके वापिस जाने का गम 
चाह कर भी ना रुक पाया है जैसे हरदम बहता दरिया 
वैसा ही आवागमन होता रहता है कर जाता है जीवन को अव्यबस्थित 
जब तक दिल की बात और अपनों ने समझा हाले दिल 
तब तक वापसी का दिन आ गया और छूट गया साथ 
दिल में बहुत कुछ रह गया था बताने को पर अपना तो चला गया 
करती रहती हूँ इंतजार एक के बाद दूसरे के आने का 
समेटती, सहेजती रहती हूँ बहुत सी बातें बताने को हर बार 
करती हूँ मै हर पल उस छड का इंतजार ......

2 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

सादर

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

विछोह का मार्मिक वर्णन...
सुंदर भावाभिव्यक्ति.

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