शुक्रवार, 3 जून 2011

बेटियां ही कियूं सहती हैं

बेटियां जब कोख में आती हैं तब भी दुःख देती हैं 
पैदा जब होती हैं, इस घिनौने संसार में तब भी दुःख देती है 
बड़ी जब होती हैं शोहदे छेड़ते हैं तब भी दुःख देती हैं 
ब्याह कर जाती हैं ससुराल और झेलती हैं पीड़ा तब भी दुःख देती हैं 

छुपाती हैं ठेरों गम, तकलीफे अपने दामन में तब भी दुःख देती है 
जब कभी झेलती हैं पुरुष का दम और दर्श तब भी दुःख देती है 
सास- ससुर , देवर नन्द के कटाक्छ हंसकर झेलती हैं तब भी दुःख देती हैं 
रखती हैं कदम जब मातृत्व की ओर और उठती है तकलीफें तब भी  देती दुःख हैं 

झेलती हैं मातृत्व पीड़ा का दारुण दुःख तब भी दुःख देती हैं 
और जब वो बनती हैं बेटी की मां और सहती हैं अत्याचार 
पारिवारिक क्लेश , पति का आतंक तब भी दुःख देती हैं 
आखिर ये सब बेटियां ही कियूं सहती हैं. ? 

6 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति .yatharth ko aapne sateek roop me प्रस्तुत किया है .आभार

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

जी बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सशक्त चित्रण।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मार्मिक प्रस्तुति...

aditi ने कहा…

मम्मी आप से हम है और आपके बगेर कुछ भी नहीं है.आप ने बहुत कुछ सहा है पर अब नहीं.अब आपको सिर्फ कुशी मिलनी चैये

Kashvi Kaneri ने कहा…

सब बेटियां ही कियूं सहती हैं...इसी लियेतो बेटियाँ प्यारी होती है न

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