पर नारी को ही छलते आये हैं इसकी दुहाई दे-देकर
हर युग में ही भोग्या बनती आई है नारी
कभी सखा, कभी प्रयेसी और कभी पत्नी बनकर
रघुकुल में भी भोगा है दारुण दुःख सीता और उर्मिला ने
एक ने काटा बनबास अरण्य में, दूसरी ने राज कुल में
यदुवंश में भी राधा ने ही काटा अपना जीवन प्रभु प्रेम में
सनेत्र बांधी पट्टी गांधारी ने और पाया अंधत्व का दारुण दुःख
बांटी गई पांचाली पांच पतियों में जो व्याही गयी सिर्फ अर्जुन को
कांप उठती है आत्मा जब भी सोंचती हूँ इन सबके दुःख को
पुरुष ने तो हमेशा ही भोगा त्यागा और कष्ट दिया इन सबको
अग्नि परीक्षा तो दी है सदैव नारी और अबला ने
कष्ट, दुःख, विरह-वेदना सबको झेला है हर युग में उसने
ना ही कोई युग बदला , ना ही बदली हमारी सोंच
हम कितना आधुनिक युग में चाहे जी ले पर
त्याग बलिदान आज भी है हिस्से में तो नारी के कांधो पर..
13 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया लिखा है आपने-आपकी इस पोस्ट का लिंक यहाँ भी है
बहुत सुंदर.....
सुन्दर सार्थक रचना !
बहुत सुन्दर रचना|
बड़ा ही सशक्त विचार।
beautifully written..
बहुत अच्छा सोचती हैं ......
बहुत सुन्दर व सशक्त रचना|
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
रोशी जी बहुत सुन्दर लिखा है...
नारी बिन सूना जगत नारी जीवन-धार।
सृजन-भाव ममता लिए नारी से संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
रोशी जी,
त्रेता से कलियुग तक नारी के जीवन के हर पृष्ठ को पलटती हुई कविता दिल तक पहुँचती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हम कितना आधुनिक युग में चाहे जी ले पर
त्याग बलिदान आज भी है हिस्से में तो नारी के कांधो पर..
sateek v marmik abhivyakti .aabhar
क्या कहूं.. बहुत सुंदर रचना
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